शनिवार, 24 अप्रैल 2010

महादेवी वर्मा की पुस्तक "भारतीय संस्कृति के स्वर" के कुछ अंश

संस्कृति और साहित्य के साथ शिक्षा सम्बन्ध अटूट है. विदेशी शासकों ने हमारे शिक्षालयों को ऐसा कारखाना बना डाला था जिसमें निर्जीव क्लर्क मात्र गढ़े जाते थे. उन्हें अपना शासन-यन्त्र चलाने के लिए ऐसे ही पुतलों की आवश्यकता थी जिनमें अपनी सांस्कृति विशेषताओं का ज्ञान होता था, अपने चरित्र का बल होता था.


हम आज भी उसी ढांचे को चलरहे हैं जिसमें मनुष्य को मनुष्यता देने की कोई शक्ति नहीं है. आज भी हमारी शिक्षा का लक्ष्य प्रमाण-पत्र देना मात्र है. हम विश्वविद्यालयों के गगनचुम्बी भवन, कीमती फर्नीचर और ऊँचे-ऊँचे वेतन पाने वाले शिक्षकों को जानते हैं और गाँव की उस पाठशाला से भी परिचत हो सकते हैं जहाँ मेघ से अधिक छप्पर बरसता है, फटा टाट ही धरती की एकमात्र सजावट है और तीन-तीन मास वेतन पाने वाले तथा विधार्थियों से एक-एक मुट्ठी चने मांगकर अपनी भूख शांत करने वाले गुरु हैं. भाव और आभाव की चरम सीमाओं पर स्थित ऐसे विश्वविद्यालयों और ऐसी पाठशालाओं में एक ही समानता मिलेगी और वह है जीवन के अदन-प्रदान का भाव, जिसके लिए शिक्षक और विद्यार्थी एकत्र होते हैं और जिसकी सफलता विद्यार्थी को पूर्ण बनाना है. ----- महादेवी वर्मा

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

हाल ही में मै भरतपुर, गोवर्धन, वृन्दावन, और मथुरा की दो दिन की यात्रा से लौटा हूँ यात्रा का प्रथम पड़ाव था भरतपुर जहाँ हमने भरतपुर का किला देखा, जिसे राजा सूरज मल जाट ने बनवाया था, किले में अब देखने लायक कुछ नही रहा है शिवाय एक संग्रालय के किले के अन्दर काफी हद तक अतिक्रमण हो चुका है, जगह जगह से महल अन्तिम सांसे गिन रहा है, भरतपुर से लौटते समय हमने राजस्थान के डीग के महल को देखने के लिए अपनी गाड़ी को उसकी दिशा में मोड़ ली, इन महलों की खासियत यह है की ये आधे पानी में हैं, इनको भी राजा सूरज मल ने ही बनवाया था और यहाँ राजा स्वयं निवास करते थे यहाँ हमे राजा की भोग विलासिता का साजो सामान देखने को मिला। डीग के महल देखने की इच्छा पुरी होने के बाद हमने गोवेर्धन का रुख किया जहाँ कुछ लोग हमारा इंतजार में रहे थे यहाँ हमने मानसी गंगा के दर्शन किए गोवेर्धन पर्वत के कुछ अंशो के भी दर्शन किए श्री गिरिराज जी की आरती में शामिल हुए। अगले दिन हमने चल पड़े मथुरा वृन्दावन की और जहाँ हमने सबसे पहले पुराणिक ब्रह्मकुंड के दर्शन किए। रंगनाथ जी का मन्दिर देखा जो काफी धनी मन्दिर है उन गलियों में घुमे जहाँ मन जाता है कभी भगवान श्री कृष्ण घूमा करते थे बिहारीजी के दर्शन के बाद हमने भगवन श्री कृष्ण के जन्म स्थली मथुरा का रुख किया यहाँ एक बात देखनो को मिली की किस तरह हिदुओं के धार्मिक स्थलों पर पूर्ण योजना के साथ किस तरह से आक्रमण किया गया है
इन्ही शब्दों के साथ आपके लिए यात्रा के दौरान ली गई कुछ तस्वीरें भी प्रेषित कर रहा हूँ जरा गौर कीजियेगा।
























































गुरुवार, 12 मार्च 2009

साज और साँस की जंग

संगीत में डूबने का अख्तर आलम का बचपन का शौक कब संगीत सीखने के जुनून में बदल गया, उसे ख़ुद भी पता चलाघर वालों से छुपकर अख्तर ने संगीत की तालीम शुरू कीजब घर वालों को पता चला तो घर में तूफान गयाऔर इन्ही तूफानों को चीरते हुए उसने संगीत का सफर शुरू किया
संगीत की शुरुआती सीढिया उसने अपने गृहनगर कटिहार में ही चढीयहाँ अख्तर ने गाना और गिटार बजाना सीखाफिर उसने और कदम बढाए और वो संगीत के कारण दिल्ली पहुँचायहाँ अख्तर ने संगीत की विधिवत शिक्षा ग्रहण कीचार साल गन्धर्व महाविद्यालय से शिक्षा ली और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत की पढ़ाई भी शुरु की, लेकिन आर्थिक स्थति ठीक होने के कारण दो साल बाद पढ़ाई छोड़ देंनी पड़ी
२००५ में अख्तर ने सपनों के शहर मुंबई का रुख कियाआँखों में सपने, शोहरत का नशा और बड़े काम की चाहमेहनत रंग लाने लगीसंगीत की दुनिया के बड़े लोगों के साथ उठना-बैठना शुरू हो चुका थाकमाई भी अच्छी- खासी थीगर्दिश के दिन बीत चले थेलेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था
अभी अख्तर को मुंबई आए दो साल ही हुए थे, २००७ में रमजान के पहले रोजे ही पेट में तेज़ दर्द उठादोस्तों ने अस्पताल में भर्ती कराया जब बीमारी पता लगी तो उसकी गंभीरता का अंदाजा थायह कोई आम बीमारी नही थीअख्तर के दोनों गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया थाअब तक जो कमाया था सब बीमारी की भेंट चढ़ गयामजबूरन अख्तर को दिल्ली लौटना पड़ाऔर एक उभरता सितारा गर्दिश में डूब चला

अख्तर आलम गुर्दे की बीमारी के कारण न केवल ज़िन्दगी और मौत से जूझ रही, अपितु महंगे इलाज के चलते गरीबी से भी जूझ रहा है। इस कलाकार की साज और साँस की जंग में सहयोग देने के लिए 'स्वर रंग' द्वारा गत ३१ जनवरी को त्रिवेणी सभागार में एक संगीत समारोह का आयोजन किया गया था, जिसमे अख्तर आलम ने - 'जीवन की शुरुआत से , जीवन के अन्तिम समय तक---' गीत गाकर लोगों से मदद की अपील की थी। इस कार्यक्रम के बाद अख्तर को मिली आर्थिक मदद से उसे साज और साँस की जंग जीतने की उम्मीद बंधी। जल्दी ही एम्स में उसका किडनी ट्रांसप्लांट होने वाला है।

आज विश्व गुर्दा दिवस के अवसर पर स्वर रंग ने अख्तर आलम के ओपरेशन के लिए एम्स में चेक जमा करवाया है।

ये कहानी तो सिर्फ़ एक अख्तर आलम की है मगर न जाने कितने ऐसे ही और अख्तर आलम हैं जो इस बीमारी और गरीबी से जूझ रहे हैं । ये कोई आम बीमारी नही है ये बीमारी किसी सुनामी से कम नही है जिसमे घर तबहा होने में समय लगे। बस इसकी जानकारी ही बचाव है ।


आज विश्व गुर्दा दिवस पर संकल्प ले।
  • हर साल अपने रक्त का एक बार जाँच करवाने का
  • अपने मरने के बाद अपने अंग दान करने का संकल्प ले

Appeal

  • your small help can save a precious life
  • come forward and join our mission to save kidney patients
  • take pledge to donate kidney and become a hope of ray for kidney patients.